हाँ तुम ही तो थी ,
जिन्हें उन धुंधले से सपनों मे कभी देखा करता था
हाँ तुम ही तो थी ,
उन रातों की वो चाँदनी , अकेले मे जिससे, कभी बातें करता था
हाँ तुम ही तो थी ,
उस धुप मे ठंडी छाँव ,
उस सर्द रात में अंगीठी की आंच
या कोहरे को हटाते, सूरज की किरण
कभी कुछ ज़ादा माँगा नहीं , कभी किसी को इतना पूजा नहीं
पर हाँ,
पाने की अगर कोई चाह, या जीने की कोई वजह
अगर कोई थी, तो वो भी, हाँ तुम ही तो थी
तुम ही हो, और तुम ही रहोगी
जिन्हें उन धुंधले से सपनों मे कभी देखा करता था
हाँ तुम ही तो थी ,
उन रातों की वो चाँदनी , अकेले मे जिससे, कभी बातें करता था
हाँ तुम ही तो थी ,
उस धुप मे ठंडी छाँव ,
उस सर्द रात में अंगीठी की आंच
या कोहरे को हटाते, सूरज की किरण
कभी कुछ ज़ादा माँगा नहीं , कभी किसी को इतना पूजा नहीं
पर हाँ,
पाने की अगर कोई चाह, या जीने की कोई वजह
अगर कोई थी, तो वो भी, हाँ तुम ही तो थी
तुम ही हो, और तुम ही रहोगी