एक ख्वाब था मेरे पास
रह्ता था दोस्त की तरह
पर हां, हमेशा खुश, हंसता हुआ
शायद मैने भी हंसना,
उसी से सीखा हो|
आज फिर वेसी ही रात
पर कही कुछ कमी, कोई दर्द ज़रुर है
वो ख्वाब अब मेरा नही, दिख रहा है जाते हुए कुछ मील दूर से
ज़िन्दगी अकेली है आज रात
इसमें भी जीना,शायद उसी से सीखा है|
कुछ ख्वाब दिखते नहीं, महसूस होते हैं
वो भी आज वही ख्वाब है
कहीं है आज भी, किन्हीं और लोगों के साथ
सुना है, नाम "चांन्द" रखा गया है उसका
मैंने तो ज़िन्दगी रखा था, क्या इतना बुरा था
ज़िन्दगी फिर से शुरु हुई है, हकीकत में
कभी सोचता हूं, फिर से जी ली जाए
कभी सोचता हूं नहीं, क्यॉंकि डर है किसी कोने में
कहीं ये ज़िन्दगी भी वही, वॅसा ही ख्वाब ना बन जाए
पर अब क्या फर्क पड़ता है,जीने को कोई और जनम ढ़ूंढ़ लेंगे ||